सिंदबाद , मैजिकल लाइफ
अचानक से वह लड़की पलटी.. उसे देख कर ही सभी की सांसे रुक गई थी। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके साथ की एक सौदागर जो सबसे अलग अलग रहती थी और बहुत ही कम बातें करती थी। इतनी खूबसूरत भी दिखाई दे सकती थी। सभी लोग उसी को घूर रहे थे।
सिंदबाद भी उसी की खूबसूरती में खो कर रह गया था। आज तो वह बहुत ही ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी।
उसने उसी कबीले के रहने वाले लोगों की तरह ही कपड़े पहने थे। कमर से नीचे टखने तक घेरदार शरारा, छोटी कुर्ती और उस पर सर पर से लटकता जालीदार दुपट्टा.. उसके खुले बाल रह रह कर उसके खूबसूरत चेहरे पर आ रहे थे.. जिन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि नामुराद काले बादल बार-बार आकर चांद पर ठहर जा रहे थे.. और उस खूबसूरत चांद के दीदार करने से रोक रहे थे।
सभी अपने होश गवा कर उसी को देखे जा रहे थे कि अचानक उसकी आवाज से सबका ध्यान टूटा।
"क्या कर रहे हो आप सब.. हवा का रुख हमारे हिसाब से हो गया है। यह समंदर है.. कभी भी अपना रुख बदल देता है.. अगर आप लोगों को यही रुकना है तो आप लोग बेशक रुक सकते हो। मगर जो जाना चाहता है.. जल्द से जल्द अपना सामान बांध लो। यह जहाज बहुत ही जल्द रवानगी लेने वाला है.. बाद में ना कहना कि बीच रास्ते में आप लोगों को छोड़ दिया।" वो गुस्से से सबको डांटे जा रही थी.. और सिंदबाद उसे प्यार से देखे जा रहा था। वो इस बात से चिढ़ गई और मुंह बनाकर चलती बनी। उसके इस बर्ताव ने सिंदबाद के दिल को सुकून पहुंचाया।
उसकी बातें सुनकर सभी को होश आया कि उन्हें अब आगे के सफर के लिए निकलना होगा। सभी हडबडाते हुए अपना अपना सामान बांधने लगे। अपने सामान के साथ सभी सौदागर जल्दी ही दरिया के किनारे पहुंच गए। जहाज ने वहां से निकलने की पूरी तैयारी कर ली थी। कुछ ही देर में जहाज ने वहां से रवानगी ली। उस टापू का सरदार उन लोगों को वहां तक रुखसत करने आया था। उसने सबसे दुबारा जल्दी आने की पेशकश की और सभी ने उसकी बात मानते हुए जल्दी आने की बात कही। वो उन्हें हाथ हिलाकर दूर तक रुखसत कर रहा था।
वहां से जब जहाज चला तो हवाओं का रुख उनके हिसाब से था। जहाज धीरे धीरे आगे बढ़ता जा रहा था। रास्ते में बहुत से छोटे-छोटे टापू मिले थे.. पर कप्तान के हिसाब से वह टापू इतने ज्यादा बड़े नहीं थे.. जो उनका माल खरीद सकें। और ना ही वहां से कुछ काम की चीजें सौदागर वहां से खरीद सकते थे। इसलिए किसी ने भी रुकना मुनासिब नहीं समझा।
उड़ी टापू से तकरीबन तीन दिन के सफर पर उन्हें एक बड़ा टापू दिखाई दिया। देखने में वह एक बड़ी मछली के बदन जैसा दिखाई दे रहा था। मतलब है कि वह टापू मछली की शक्ल का था। बहुत ही हरा भरा और खूबसूरत..!!
कप्तान की आंखों में उस टापू को देखते ही चमक आ गई थी। उसने सौदागरों को बताया कि उस टापू का नाम मछहर टापू था.. उसकी मछली के जैसी बनावट की वजह से ही उसका नाम मचहर टापू पड़ा था।
वहां के लोग मछली पालन और रेशम का कारोबार करते थे। यह भी कहा जाता था.. कि वहां की रेशम बहुत ही खूबसूरत और अनोखी होती थी। और लोग नहीं जानते थे कि वहां के वाशिंदे रेशम किस तरह से बनाते थे..?? पर उनकी रेशम में एक बहुत ही खूबसूरत चमक होती थी। जो उस वक्त के किसी भी और जगह की रेशम में नहीं होती थी।
उस टापू को देखकर कप्तान ने बताया कि वहां से रेशम खरीद कर आगे महंगे भावों में बेच सकते थे। ऐसा कहकर जहाज को उस टापू की तरफ मोड़ दिया। भले ही वह टापू वहां से बहुत नजदीक दिख रहा था.. पर अभी भी वह टापू एक दिन के सफर की दूरी पर था।
अगले दिन मौसम ठीक रहने की वजह से वह लोग तय वक्त से एक घड़ी पहले ही टापू पर पहुंच गए थे। टापू पर और जहाज भी खड़े थे.. जो अलग-अलग जगह से वहां पर आए थे। जब उनका जहाज उस टापू पर पहुंचा.. तो कुछ लोग वहां उनके इस्तकबाल के लिए खड़े थे।
कप्तान को बहुत ही ज्यादा हैरत हुई क्योंकि उस टापू के लोग बहुत ही ज्यादा अमीर थे और वह इस तरह से किसी भी कारोबारी जहाज.. जो सौदागरों को लाता ले जाता था.. उनके इस्तकबाल के लिए नहीं आते थे।
सिंदबाद बहुत ही ज्यादा पुरजोश था.. उसे यकीन था कि वहां पर उसके माल के लिए बहुत अच्छे खरीदार मिल जाएंगे। जब वह लोग टापू पर उतरे.. तब तकरीबन दस लोग उनके इस्तकबाल के लिए खड़े थे।
जिन्होंने बहुत ही अलग तरह का पहनावा पहना हुआ था। उन आदमियों ने एक खास तरह की सलवार पहनी हुई थी और उसके ऊपर डोरियों से बना हुआ कुर्ता डाला हुआ था.. जो उनकी पीठ को ही ढंक रहा था। उनका सीना खाली डोरियों से ही ढंका हुआ था.. जो एक खास तरीके से बुनी हुई थी। उन लोगों ने सारे सौदागरों का इस्तकबाल किया और झुक कर उन सबको सलाम किया।
जहाज के कप्तान ने उनके सरदार से बात करना शुरू किया। सरदार के सामने जाकर कप्तान ने भी झुक कर सलाम किया और उनसे पूछा, "हुजूर..!! आज से पहले भी कई बार हमारा जहाज इस टापू पर कारोबार के लिए आया था.. पर कभी भी इस तरह का इस्तकबाल नहीं हुआ। कोई खास वजह.. जिसके लिए आप लोग यहां हमें लेने आए हैं।"
तब उन लोगों के सरदार ने अकड़ भरी आवाज में कहा, "बिल्कुल.. हम लोग इतने ज्यादा अमीर और इतनी नेमतें हमें मिली हुई है.. कि हमें किसी के भी इस्तकबाल के लिए यहां आने की जरूरत नहीं।"
सभी सौदागर उन लोगों को एक दूसरे की तरफ देखते हुए देख रहे थे। उन लोगों के सरदार की आंखों में एक अजीब सी हिकारत उन सौदागरों के लिए थी। उस टापू के लोग बाकी लोगों को अपने से कमतर समझते थे।
तब कप्तान ने अपनी आवाज को नरम बनाते हुए खुश्क लहजे में पूछा, "तो हुजूर.. आप लोगों ने इतना बड़ा रहम हम लोगों पर क्यों किया..?? कोई खास वजह है क्या इसकी??"
सरदार ने जब कप्तान की ऐसी तीखी बात सुनी तो उसने अपनी आवाज को थोड़ा नरम करते हुए और अपनी अना को एक तरफ रखते हुए कहा, "नहीं.. नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं है.. आप लोग इस टापू पर कारोबार के लिए आने वाले 786 वे नंबर के जहाजी हो और आप लोगों को तो पता ही है 786 नंबर हमारे मजहब में कितना खास है। इसलिए हम यहां खुद से चलकर आप लोगों के इस्तकबाल के लिए आए हैं। आप लोग जब तक यहां रहेंगे.. हमारी खास मेहमाननवाजी का लुफ्त उठाएंगे। इसलिए आप लोग हमें अपनी मेहमान नवाजी करने का एक मौका दें..!!" ऐसा कहकर उसने उस सरदार ने सभी सौदागरों को एक बेहतर जगह ठहराने का बंदोबस्त करने के लिए अपने मातहत लोगों से कहा।
कप्तान और सभी सौदागर इस बात को सुनकर सभी बहुत खुश हो गए थे। खुश तो सिंदबाद भी हो गया था पर उसकी खुशी उसे थोड़ी अधूरी लग रही थी। इसलिए वह बस इधर उधर गर्दन घुमा कर वहां का जायजा लेने लगा था।
Anjali korde
10-Aug-2023 11:13 AM
Nice
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Babita patel
04-Aug-2023 05:58 PM
Nice
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